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NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 10 Vakh Question Answers

Get NCERT Solutions for Class 9 Hindi (Kshitij) Chapter 10 – Vakh. Includes summary, important questions and answers, PDF download, and exam-focused preparation tips by experts.
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NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 10 Vakh Question Answers

Class 9 Hindi Kshitij Part 1 Chapter 10 Vakh presents the spiritual thoughts and life experiences of poet-saint Lal Ded. Through this chapter, students understand the importance of self-realization, devotion, and liberation from worldly attachments. Here, we provide accurate and easy-to-understand answers to all the questions from this chapter to help you in your exam preparation.

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NCERT Solution Class 9 Hindi Chapter Vakh

The chapter Vakh is based on the writings of the Kashmiri saint poetess Lal Ded. Through this work, she highlights the importance of devotion, the barriers that come in the way of reaching God, and the necessity of detachment from material happiness. She believes that reaching God requires true devotion, self-control, and self-realization instead of pretense.

Class 9 Hindi Vakh Question Answer

Below are the complete NCERT question-and-answer solutions for Vakh from Class 9 Hindi Kshitij Part 1. These answers are prepared in simple yet detailed language to help you learn the meaning of the textbook. These will help students learn deep about the chapter and score better marks in exams. Each solution is designed to address the important points from the chapter, making it more comfortable to prepare for both short-answer and long-answer type questions in exams.

1. ‘रस्सी’ यहाँ पर किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है ?

उत्तर:- रस्सी’ शब्द जीवन जीने के साधनों के लिए प्रयुक्त हुआ है। वह स्वभाव में कच्ची अर्थात् नश्वर है।

2. कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं ?

उत्तर:- कवयित्री इस संसारिकता तथा मोह के बंधनों से मुक्त नहीं हो पा रही है ऐसे में वह प्रभु भक्ति सच्चे मन से नहीं कर पा रहीं है। अत: उसे लगता है उसके द्वारा की जा रही सारी साधना व्यर्थ हुई जा रही है इसलिए उसके द्वारा मुक्ति के प्रयास भी विफल होते जा रहे हैं।

3. कवयित्री का ‘घर जाने की चाह’ से क्या तात्पर्य है?

उत्तर:- परमात्मा से मिलना।

4.भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) जेब टटोली कौड़ी न पाई।
(ख) खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अहंकारी।


उत्तर:- (क) यहाँ भाव है कि मैंने ये जीवन उस प्रभु की कृपा से पाया था। इसलिए मैंने उसके पास पहुँचने के लिए कठिन साधना चुनी परन्तु इस चुनी हुई राह से उसे ईश्वर नहीं मिला। मैंने योग का सहारा लिया ब्रह्मरंध करते हुए मैंने पूरा जीवन बिता दिया परन्तु सब व्यर्थ ही चला गया और जब स्वयं को टटोलकर देखा तो मेरे पास कुछ बचा ही नहीं था। अर्थात् काफी समय बर्बाद हो गया और रही तो खाली जेब।

(ख) भाव यह है कि भूखे रहकर तू ईश्वर साधना नहीं कर सकता अर्थात् व्रत पूजा करके भगवान नहीं पाए जा सकते अपितु हम अहंकार के वश में वशीभूत होकर राह भटक जाते हैं। (कि हमने इतने व्रत रखे आदि)।

5. बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए ललदय ने क्या उपाय सुझाया है?

उत्तर:- कवयित्री के अनुसार ईश्वर को अपने अन्त:करण में खोजना चाहिए। जिस दिन मनुष्य के हृदय में ईश्वर भक्ति जागृत हो गई अज्ञानता के सारे अंधकार स्वयं ही समाप्त हो जाएँगे। जो दिमाग इन सांसारिक भोगों को भोगने का आदी हो गया है और इसी कारण उसने ईश्वर से खुद को विमुख कर लिया है, प्रभु को अपने हृदय में पाकर स्वत: ही ये साँकल (जंजीरे) खुल जाएँगी और प्रभु के लिए द्वार के सारे रास्ते मिल जाएँगे। इसलिए सच्चे मन से प्रभु की साधना करो, अपने अन्त:करण व बाह्य इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर हृदय में प्रभु का जाप करो, सुख व दुख को समान भाव से भोगों। यही उपाय कवियत्री ने सुझाए हैं।

6. ईश्वर प्राप्ति के लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव किन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है ?

उत्तर:- उपर्युक्त भाव निम्न पंक्तियों में व्यक्त हुआ है –
आई सीधी रह से, गई न सीधी राह।
सुषम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह !
जेब टटोली, कौड़ी न पाई।
माझी को दूँ, क्या उतराई ?

7. ‘ज्ञानी’ से कवयित्री का अभिप्राय है ?

उत्तर:- ज्ञानी से कवयित्री का अभिप्राय है जिसने आत्मा और परमात्मा के सम्बन्ध को जान लिया हो। कवयित्री के अनुसार ईश्वर का निवास तो हर एक कण-कण में है परन्तु मनुष्य इसे धर्म में विभाजित कर मंदिर और मस्जिद में खोजता फिरता है। वास्तव में ज्ञानी तो वह है जो अपने अंतकरण में ईश्वर को पा लेता है।

• रचना और अभिव्यक्ति
8.1 हमारे संतों, भक्तों और महापुरुषों ने बार-बार चेताया है कि मनुष्यों में परस्पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होता, लेकिन आज भी हमारे समाज में भेदभाव दिखाई देता है –
आपकी दृष्टि में इस कारण देश और समाज को क्या हानि हो रही है ?


उत्तर:- समाज में व्याप्त भेदभाव के कारण निम्न हानियों हो रही है –
1. हिंदू मुस्लिम का झगड़ा इसी भेदभाव की उपज है जिसके परिणाम स्वरूप भारत पाकिस्तान दो देश बने।
2. भेदभाव के कारण ही उच्च और निम्न वर्ग में सामंजस्य स्थापित नहीं हो पाता।
3. पर्वों के समय अनायास झगड़े की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
4. आपसी भेदभाव के कारण ही एक वर्ग दूसरे वर्ग को संदेह और अविश्वास की दृष्टि से देखता है।
5. भेदभाव की उपज से अलगाववाद, उग्रवाद जैसी सामाजिक समस्याएँ पैदा होती है।

8.2 हमारे संतों, भक्तों और महापुरुषों ने बार-बार चेताया है कि मनुष्यों में परस्पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होता, लेकिन आज भी हमारे समाज में भेदभाव दिखाई देता है –
आपसी भेदभाव को मिटाने के लिए अपने सुझाव दीजिए।


उत्तर:- आपसी भेदभाव को मिटाने के लिए निम्न सुझाव अपनाए जा सकते हैं –
1. आपसी भेदभाव को मिटाने के लिए सबसे पहले उन बातों की चर्चा ही न करें जिससे यह भेदभाव उपजता हो।
2. सरकार अपनी नीतियों के द्वारा आपसी जाति भेदभाव को बढ़ावा न दें।
3. राजनैतिक दल अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए लोगों की धार्मिक भावनाओं का सहारा न ले।
4. नौकरियों, शिक्षा तथा अन्य किसी भी सरकारी योजनाओं में आरक्षण को बढ़ावा न देकर योग्यता को आधार बनाना चाहिए।
5. स्कूली पाठ्यक्रम भी एकता समता पर आधारित हों।

लघु उत्तरीय प्रश्न
1.नाव किसका प्रतीक है? कवयित्री उसे कैसे खींच रही है?


उत्तर:- नाव इस नश्वर शरीर का प्रतीक है। कवयित्री उसे साँसों की डोर रूपी रस्सी के सहारे खींच रही है।

2.कवयित्री भवसागर पार होने के प्रति चिंतिते क्यों है?

उत्तर:- कवयित्री भवसागर पार होने के प्रति इसलिए चिंतित है क्योंकि वह नश्वर शरीर के सहारे भवसागर पार करने का निरंतर प्रयास कर रही है परंतु जीवन का अंतिम समय आ जाने पर भी उसे अच्छी प्रार्थना स्वीकार होती प्रतीत नहीं हो रही है।

3.कवयित्री ने अपने व्यर्थ हो रहे प्रयासों की तुलना किससे की है और क्यों?

उत्तर:- कवयित्री ने अपने व्यर्थ हो रहे प्रयासों की तुलना कच्चे सकोरों से की है। मिट्टी के इन कच्चे सकोरों में जल रखने से जल रिसकर बह जाता है और सकोरा खाली रहता है उसी प्रकार कवयित्री के प्रयास निष्फल हो रहे हैं।

4.कवयित्री के मन में कहाँ जाने की चाह है? उसकी दशा कैसी हो रही है?


उत्तर:- कवयित्री के मन में परमात्मा की शरण में जाने की चाह है। यह चाह पूरी न हो पाने के कारण उसकी दशा चिंताकुल है।

5.बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए कवयित्री क्या आवश्यक मानती है?


उत्तर:- बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए कवयित्री का मानना है कि मनुष्य को भोग लिप्ता से आवश्यक दूरी बनाकर भोग और त्याग के बीच का मध्यम मार्ग अपनाना चाहिए। उसे संयम रखते हुए भोग और त्याग में समान भाव रखना चाहिए।

6.‘न खाकर बनेगा अहंकारी’-कवयित्री ने ऐसा क्यों कहा है?

उत्तर:- ‘न खाकर बनेगा अहंकारी’-कवयित्री ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि भोग से दूरी बनाते-बनाते लोग इतनी दूरी बना लेते हैं कि वे वैराग्य धारण कर लेते हैं। उन्हें अपनी इंद्रियों को वश में करने के कारण घमंड हो जाता है। वे स्वयं को सबसे बड़ा तपस्वी मानने लगते हैं।

7.कवयित्री किसे साहब मानती है? वह साहब को पहचानने का क्या उपाय बताती है?

उत्तर:- कवयित्री परमात्मा को साहब मानती है, जो भवसागर से पार करने में समर्थ हैं। वह साहब को पहचानने का यह उपाय बताती है कि मनुष्य को आत्मज्ञानी होना चाहिए। वह अपने विषय में जानकर ही साहब को पहचान सकता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1.‘जेब टटोली कौड़ी न पाई’ के माध्यम से कवयित्री ने क्या कहना चाहा है? इससे मनुष्य को क्या शिक्षा मिलती है?

उत्तर:- ‘जेब टटोली कौड़ी न पाई’ के माध्यम से कवयित्री यह कहना चाहती है कि हठयोग, आडंबर, भक्ति का दिखावा आदि के माध्यम से प्रभु को प्राप्त करने का प्रयास असफल ही होता है। इस तरह का प्रयास भले ही आजीवन किया जाए पर उसके हाथ भक्ति के नाम कुछ नहीं लगता है। भवसागर को पार करने के लिए मनुष्य जब अपनी जेब टटोलता है तो वह खाली मिलती है। इससे मनुष्य को यह शिक्षा मिलती है कि भक्ति का दिखावा एवं आडंबर नहीं करना चाहिए।

2.‘वाख’ पाठ के आधार पर बताइए कि परमात्मा को पाने के रास्ते में कौन-कौन सी बाधाएँ आती हैं?

उत्तर:- परमात्मा को पाने के रास्ते में आने वाली निम्नलिखित बाधाएँ पाठ में बताई गई हैं-
1.क्षणभंगुर मानव शरीर और नश्वर साँसों के सहारे मनुष्य परमात्मा को पाना चाहता है।
2.परमात्मा को पाने के प्रति मन का शंकाग्रस्त रहना।
3.अत्यधिक भोग में लिप्त रहना या भोग से पूरी तरह दूर होकर वैरागी बन जाना।
4.मन में अभिमान आ जाना।
5.सहज साधना का मार्ग त्यागकर हठयोग आदि का सहारा लेना।
6.ईश्वर को सर्वव्यापक न मानना।
7.मत-मतांतरों के चक्कर में उलझे रहना।
इनं बाधाओं के कारण प्रभु-प्राप्ति होना कठिन हो जाता है।

NCERT Hindi Kshitij Class 9 Chapter 10 PDF

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NCERT Solutions Class 9 Hindi Vakh Question Answer PDF

NCERT Solutions Class 9 Hindi Vakh Question Answer PDF

FAQ

Who is the poetess of the Vakh chapter?

It is written by Lal Ded, a famous saint poetess from Kashmir.

What is the main message of the Vakh chapter?

That God can be attained only through true devotion, discipline, and self-realization, not through pretension or extreme asceticism.

What is the symbolic meaning of Rashi in this chapter?

It symbolizes the means of living, which are temporary and perishable.

Is the PDF of this chapter available on Physics Wallah?

Yes, it can be downloaded from the Physics Wallah website.

How important is the Vakh chapter for exams?

It is highly important from literary, moral, and spiritual perspectives and is frequently asked in exams.
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